रोज़ ये जो भीड़ भागती है
इसी भीड़ का हिस्सा हो तुम
फ़िलहाल कोई जानता नहीं तुमको
एक अनसुना सा क़िस्सा हो तुम
क्या खाना खाया या बोहात बिमार हो तुम
कोई पूछेगा नहीं अभी मेहनत की गाड़ी पर सवार हो तुम
रुक रुक क्यूँ चल रहे हो
बिजली जैसी रफ़्तार हो तुम
कदम कदम पर मुश्किलें आएँगी बौहत
ना टूटने वली दीवार हो तुम
हाँ बिखरना तुम्हारे बस में नहीं
उसका प्यार उस ख़त में नहीं
तुमने भी चाहा होगा किसी को
बफ़ा करना सबकी नियत में नहीं
तो क्या हुआ कोई चला गया
तो क्या हुआ यूँ बिखरा गया
तो क्या हुआ पोहचें देर से तुम
तो क्या हुआ वो इश्क़ लौटा गया
के कुछ उसकी नदी में पानी कम है
तो कुछ तुम्हारी उम्मीद को भी तैरना आता है
क्यूँ बदलते हो हर वो रास्ता
जो उसके घर की तरफ़ ले जता है
क्या सोच रहे हो ख़त्म हो गयी ये ज़िंदगी
याद रखना रात के बाद रोशन दिन ज़रूर आता है
हार कर खुद से क्या मिलेगा
वो फिर ग़ैरों से जा मिलेगा
जीत कर दिखाना है सबको
ये वक्त दुबारा ना मिलेगा
ये किसके नक़्शे कदम पर चल रहे हो
सूखे पेड़ की टहनी हो मौसम की तरह ढल रहे हो
एक आग है सीने में जो उसमें क्यूँ जल रहे हो
मरहम लगाते हैं ज़ख्मों पर लोग यहाँ ,तुम तो यार नमक मल रहे हो
बोल कर तुम्हारे साथ हूँ मैं ये
दोस्त तुम तो अपना काम कर रहे हो
धोका खाते-खाते सीख जाओगे
हालातों से लड़ते-लड़ते जीत जाओगे
देखना नाज़ होगा सबको यहाँ
कुछ वक्त में ही कामयाब कहलाओगे
भीड़ का नहीं दौड़ का हिस्सा हो तुम
जीत कर दिखाना है सबको
छोटा नहीं बौहत बड़ा क़िस्सा हो तुम
छोटा नहीं बौहत बड़ा क़िस्सा हो तुम