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  • Writer's pictureSachin G

अकेला सफ़र अजनबी मंज़िल

मैं वो नहीं

या वो नहीं है मुझमें

जो था कभी

अब कोई कमी नहीं है मुझमें


फिर भी परेशान हूँ

इस कमाए हुए मंज़र से हैरान हूँ

बहुत बातें की, कई रातें की

बोल तो सकता हूँ मगर फिर भी बेज़ुबान हूँ

इस मंज़र से हैरान हूँ


यार तो हज़ार हैं

कुछ अच्छे कुछ बेकार हैं

दो चार ही दिल के अंदर हैं

बाक़ी तो बहार हैं

हाँ यार तो हज़ार हैं


ऊँचाई ही ऊँचाई है

तक़दीर जो बनाई है

हाँथ में है सब कुछ लिखा

पर खुद से ही लड़ाई है

ऊँचाई ही ऊँचाई है


कुछ वक्त सहारा देते हैं

फिर अजनबी करदेते हैं

एक झूटे प्यार के नाम पर

लोग क्या क्या दुआ पढ़ देते हैं

कुछ वक्त सहारा देते हैं


वो गोध माँ की थी कभी

हाँ नींद आती थी जभी

कोई है नहीं अपना यहाँ

वो वक़्त गया है खो कहीं

वो वक़्त गया है खो कहीं




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