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  • Writer's pictureSachin G

उम्मीद

मैं रोज़ रात घर लौटता हुँ

एक नयी उम्मीद लेके

.

कुछ दुख कुछ दर्द लेके


.

एक आस कुछ फ़र्ज़ लेके

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कुछ वक्त कुछ नींद खोके

.

मैं रोज़ रात घर लौटता हूँ

एक नयी उम्मीद लेके

.

जब टूट जाता है हौंसला मेरा

.

जब रूठ जता है वक्त मेरा

.

जब कोई ना दे साथ मेरा

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जब अकेला पड़ जाए हाँथ मेरा

.

मैं चल पड़ता हुँ चेहरे पे मुस्कान लेके

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मैं रोज़ रात घर लौटता हुँ

एक नयी उम्मीद लेके

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इश्क़ अधूरे रहे,फ़र्ज़ सारे पूरे किए

.

कुछ अपने साथ हैं,पराए जाने दिए

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मैं रहता हूँ धुन में अपनी

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ज़ख्म तो सारे कबके भुला दिए

.

आग लगा कर किसी के घर में

.

दूर खड़े रह कर कभी हाँथ नहीं सेके

.

मैं रोज़ रात घर लौटता हुँ

एक नयी उम्मीद लेके

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