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  • Writer's pictureSachin G

एक खुआब


के एक खुआब था जो सताता था मुझे

उसने इश्क़ किया ही नहीं पर जताता था मुझे


सारे क़समें वादे तोड़ कर

मेरी छोटी छोटी ग़लतियाँ गिनाता था मुझे


रात भर करता था इंतज़ार मैं जिसका

ना जाने क्यूँ इंतज़ार में तड़पता था मुझे


मैंने रख दिया कलेजा उसके कदमों में

वो फिर भी आग पर चलाता था मुझे


मैंने हर ग़म सहा हर बात मानी

शिवाए इश्क़ के कुछ ना आता था मुझे


के एक खुआब था जो सताता था मुझे

उसने इश्क़ किया ही नहीं पर जताता था मुझे

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