ज़िम्मेदारीयो का इतना भार है सर पे के जीना भूल गया हुँ
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मैं मेहनत के रास्ते पर चलते चलते बोहत दूर गया हुँ
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दिन रात सोचता हुँ हर किसी के बारे में
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के खुद से ही बात करना भूल गया हुँ
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रोजमर्रा की भाग दौड़ में बड़े शहर की रौशनी में
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भूल गया हूँ दोस्तों का घर जहाँ हँसा रोज़ करता था में
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ये जो काम तुने दिया है ज़िंदगी कभी पुरा होगा क्या
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लोग जीते हैं रोज़ यहाँ सिर्फ़ मेरा ही जीवन अधूरा होगा क्या
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ये जो सूखा पेड़ है पानी देते देते कभी खिलेगा क्या
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सोचते सोचते थक गया हूँ शुरू से जीने का मौक़ा मिलेगा क्या
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क्या इस बार दुनिया के बारे में सोचना छोड़ दूँ
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के अपना ही दिल हर बार कैसे तोड़ दूँ
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वक्त थोड़ा ही है मुझपे क्यूँ ना हँसी ख़ुशी काट लूँ
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आओ बैठो मेरे साथ कुछ दुख दर्द तुमसे भी बाँट लूँ
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ज़ख्म सहते सहते,बस हुआ कहते कहते
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मैं पागल सा दिखने लगा हुँ लोगों को बेवजह खुश रहते रहते
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मौत आती तो चल पड़ता उसके साथ मैं
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वक्त से पहले छोड़ देता सबका हाँथ मैं
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खैर इस बार भी सबके बारे में सोच कर रुक गया हूँ
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ज़िम्मेदारियों का इतना भार है सर पे के जीना भूल गया हुँ