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  • Writer's pictureSachin G

जीमेदारियाँ

ज़िम्मेदारीयो का इतना भार है सर पे के जीना भूल गया हुँ

.

मैं मेहनत के रास्ते पर चलते चलते बोहत दूर गया हुँ

.

दिन रात सोचता हुँ हर किसी के बारे में

.

के खुद से ही बात करना भूल गया हुँ

.

रोजमर्रा की भाग दौड़ में बड़े शहर की रौशनी में

.

भूल गया हूँ दोस्तों का घर जहाँ हँसा रोज़ करता था में

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ये जो काम तुने दिया है ज़िंदगी कभी पुरा होगा क्या

.

लोग जीते हैं रोज़ यहाँ सिर्फ़ मेरा ही जीवन अधूरा होगा क्या

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ये जो सूखा पेड़ है पानी देते देते कभी खिलेगा क्या

.

सोचते सोचते थक गया हूँ शुरू से जीने का मौक़ा मिलेगा क्या

.

क्या इस बार दुनिया के बारे में सोचना छोड़ दूँ

.

के अपना ही दिल हर बार कैसे तोड़ दूँ

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वक्त थोड़ा ही है मुझपे क्यूँ ना हँसी ख़ुशी काट लूँ

.

आओ बैठो मेरे साथ कुछ दुख दर्द तुमसे भी बाँट लूँ

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ज़ख्म सहते सहते,बस हुआ कहते कहते

.

मैं पागल सा दिखने लगा हुँ लोगों को बेवजह खुश रहते रहते

.

मौत आती तो चल पड़ता उसके साथ मैं

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वक्त से पहले छोड़ देता सबका हाँथ मैं

.

खैर इस बार भी सबके बारे में सोच कर रुक गया हूँ

.

ज़िम्मेदारियों का इतना भार है सर पे के जीना भूल गया हुँ




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